Abhinav Kumar   (अभिनव)
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Joined 16 April 2020


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Joined 16 April 2020
16 MAR 2023 AT 19:38

हम मान गए हैं
हम देशद्रोही, तुम देशभक्त
क्योंकि तुम्हारी देखभक्ति की मान्यता
तभी सिद्ध होगी
जब हमे देशद्रोही कह पाओगे

चलो ये भी मान गए कि हम पापी
आखिर तुम्हारे पूण्य की यथार्थता
बिना हमारे पापी सर पे तांडव किये
थोड़े ही सिद्ध होगी

मान लिया हम झूठे
तुम्हारे सच के पाखंड का
स्वर और स्तर बहुत ऊंचा
हम चीख नही पाएंगे उतना

सबको मान लेने दो
के हम मान गए हैं
शोर तो कम हो
खुद की सोच सुनाई नही देती अब

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29 JAN 2023 AT 10:55

उड़ान की कीमत
और पँखो से टकराती आज़ादी के
थपेड़ों की अहमियत
पिंजरे के सलाखों से लड़ते हुए
परिंदों को ही मालूम होती है
जिनका पूरा आसमाँ होता है
वो अक्सर साखों पर
बैठ जाते हैं..

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6 JAN 2023 AT 19:28

तुम्हे निहार लेता हूँ
मोहताज़ थोड़े ही हूँ
रोशनी है तुम्हारी पर
एक तुम ही रोशन
महताब थोड़े ही हो
माना की मेरा हर कल तुम्हारा था
लेकिन मेरा आज थोड़े ही हो तुम
मैंने आग से अपने आज रौशन कर लिए हैं
शायद जल भी जाऊं
उसके लिए जिम्मेदार
थोड़े ही हो तुम

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20 DEC 2022 AT 10:56

मैं यूं ही कुछ भी कहता रहता हूँ
जो तुम सुनोगी तो कुछ अच्छा सा बताऊं
मैं यूँ ही कुछ  भी लिखता रहता हूँ
जो तुम पढ़ोगी तो कुछ अच्छा सा सजाऊँ
बाग तो सूंदर हर गली पे हैं
जो तुम टहलने निकलो
तो फुल कुछ अच्छे  खिलाऊँ
रास्ते अच्छे बुरे हर शहर में
जो तुम निकलो बाहर तो
तो राहें सुगम करवाऊं
यूँ तो जीता ही जा रहा हूँ
जो तुम साथ दोगी
तो जी की दिखाऊं

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21 NOV 2022 AT 18:18

अच्छा तो मैं क्या कह रहा था
रहने देते हैं ना
जो चल रहा है
चलने देते हैं ना
वो आकाश अनंत है
क्षितिज तक चलते हैं ना
क्षितिज छलावा है
सब चीखते फिरते हैं
किसी ने जाके देखा है क्या
क्या पता तुम सिर्फ दो कदम पहले
वापस मुड़ जाते होंगे
यूँ ही कह देते हो कुछ भी
कहने देते हैं ना
अच्छा मैं क्या कह रहा था
रहने देते हैं ना...

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26 AUG 2022 AT 12:08

मेरी समझ अलग अलग जुबानों में
धोखा खा जाती हैं
जो इशारों में बात करनी हो
तो इत्तला करना

यूँ तो इशारों से
आसमाँ में मिनारें बुनते रहते
तुम्हें एक छोटा सा भी
आशियाँ दिख पड़े
तो इत्तला करना

दूरी, दौड़ और जद्दोजहद
कहाँ किसी को दिखते है
तुम्हें हमारे इश्क़ में
उल्फ़त दिख जाए
तो इत्तला करना

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5 MAY 2022 AT 23:08

कैसे पहचानू इस जंगल में अपना ठिकाना
इन सुलझी हुई इमारतों में
ज़िंदगियाँ अस्त व्यस्त हुई पड़ी है

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19 APR 2022 AT 16:30

Silence is not just the armour
If impenetrable its more than a weapon
It not only shields me from your screams
My silence will leave you scarred forever...

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18 APR 2022 AT 23:33

संतुलन का अर्थ जो समाज समझता है
थोड़ा निराधार नही है?
सूर्य की तलपिश बहुत है और चांद बेचारा शीतल पड़ा है
यही संतुलन है, या दोनों की तपिश बराबर हो जाये?
समंदर में इतनी ऊंची लहरें
नहरे बेचारी शांत पड़ी हैं
हिमालय यूँ ऊंचा खड़ा है
जमीन बेचारी समतल पड़ी है
संतुलन यही है, या सब एक समान हो जाये?
हम तुम जो अलग अलग बुने गए हैं
वो संतुलन ही है....
ना तुम हमारी तपिश बुझाने की कोशिश करो
ना हम तुम्हारी शीतलता में आग लगाएंगे

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17 APR 2022 AT 22:41

सोमवार सुबह तड़के ही मन निकल पड़ता है
अगले इतवार की तलाश में
पेट जाता है नौकरी करने
क्योंकि उसको भूख की चिंता है
दिमाग जाता है नौकरी करने
उसे आगे बढ़ने की होड़ है
मन को क्या एक सुकून की शाम चाहिए बस
वो सोमवार सुबह तड़के ही निकल पड़ता है
अगले इतवार की तलाश में

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