ABHINANDAN KUMAR   (अभिनंदन कुमार)
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"न नदी हूँ ; न सागर हूँ ; ना ही दरिया हूँ ,
नाचीज मैं ; नाजिर की नजर का नजरिया हूँ।"
Joined 31 December 2018


"न नदी हूँ ; न सागर हूँ ; ना ही दरिया हूँ ,
नाचीज मैं ; नाजिर की नजर का नजरिया हूँ।"
Joined 31 December 2018
4 SEP 2021 AT 16:32


"मेरे ज्ञान के रक्षक, अज्ञान के भक्षक
मेरे हर शिखर के शीर्ष के शीर्षक
है जिनको,
नित नतमस्तक ये मेरा शीश
वो कोई नहीं मेरे शुभाशीष
मेरे मां का आंचल; मेरे गुरु का आशीष।"

- अभिनंदन कुमार

(शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं)




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4 AUG 2021 AT 9:59

कहीं ये दफ्न होती है
कहीं हो राख जाती है
यही इस देह का दस्तूर
निकल जब सांस जाती है।
मगर इंसान मरता है
नहीं इंसानियत मरती
ना इसकि बास जाती है
ना इसकि साख जाती है
यही इंसानियत का नूर
निकल जब सांस जाती है।




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9 NOV 2020 AT 11:00

सपनों को साकार करेंगे
धीरज को ही धार करेंगे
जब तक जां है रार करेंगे
जीते जी क्यूं हार करेंगे।

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14 SEP 2020 AT 20:53

निज भाषा में नाद गढ़ें
तय मंजिल जब तक मस्तक हो
उनकी भाषा में संवाद गढ़ें
जो चाहत दिल तक दस्तक हो।


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22 AUG 2020 AT 19:56

यूं तो हर दिन अपने आप में कुछ खास होता है
पर उस दिन मां को मां होने का एहसास होता है ।

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14 JUN 2020 AT 22:02

दिल को ये यकीन था कि हां कोई अपना है
दोनों टूटे जब हुआ इल्म ये महज सपना है
इससे पहले कि कोई कहता अब तुम्हें सम्हलना है
यम ने किया विवश अब तुम्हें यहां क्यूं रहना है ?

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30 MAR 2020 AT 13:54

तुम क्या मुझको जीवन दोगे
सब देख रहा है ऊपरवाला
दोषी को घर में कर दो
और निर्दोषी को बेघर कर दो
तुम कहते हो गलती हो गई
भईया हमको माफ़ी कर दो
वैसे तो कमजोर नहीं हूं
पर जालिम जितना मज़बूत नहीं
पर अपने घर तक ना जा पाऊं
अभी जिंदा हूं ताबूत नहीं।

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30 MAR 2020 AT 13:39

पीठ पे डंडा पांव में छाला
चार दिनों से नहीं निवाला
वो देखो लाश पड़ी है 
और मैं भी हूं मरनेवाला
मेरा क्या है मज़दूर हूं मैं
मैं भूख-प्यास में पलनेवाला
सदियों से यूं जीनेवाला
पर चंद मास के भूखे बाला को
मैं कैसे समझाऊं ताला
जब वो मुझसे बिलख के मांगे
पापा कहां है मेरे दूध का प्याला ?

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30 MAR 2020 AT 13:00

बिन मजदूरी मैं खाऊं 
ये मेरा अधिकार नहीं
हरगिज़ मुझको स्वीकार नहीं
बिन मजदूरी तुम मुझे खिलाओ
क्या ये मेरे स्वाभिमान को
दुत्कार नहीं ?
प्रांगंड में तुम्हारे पांव रखूं तो
तुम कहते अछूत नहीं
क्या है जगत में निर्माण कोई
जो है मज़दूर से छूत नहीं ?

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30 MAR 2020 AT 12:49

मैं मज़दूर सही, मजबूर सही
है अपनी मंजिल दूर सही
तुम कह दो मुझको नासूर सही
पर बिन मज़दूरी खाते देखा तुमने है मज़दूर कहीं
करते-करते मर जाऊं मैं ये मुझको मंजूर सही
पर बैठे-बैठे मैं खांऊ ये मुझको मंजूर नहीं।
तुम ताजमहल के शाहज़हां
मैं ताजमहल का मज़दूर सही
तुम तब भी थे इतने क्रूर कहीं
मेरा अब भी कोई कुसूर नहीं।

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