कब तल्ख़ मेरी राहें यूँ ही सुनसान रहेंगी,
ज़िंदगी तू कब तक इम्तिहाँ लेती रहेगी।
थक गया हूँ तुझसे मोहब्बत करते करते,
अब तो बता तू कब मुझे गले लगाएगी।
हँसाकर इक पल में दूजे में आँसू देने वाली,
कब तू ये मुस्कान हमेशा मेरे चेहरे पर सजायेगी।
सपने हैं कुछ मेरे जो आँखों मे लिए हुये हूँ,
कब तू उन्हें पूरा करने को मुझसे हाथ मिलाएगी।
आधे ख्वाब अधूरी ख़्वाहिशें पर पूरी होती हुई तू,
ए ज़िन्दगी कब तू खुद को मुक़ाम पर ले जाएगी।
हर मोड़ पर तेरा एक नया रूप और रंग है,
ना जाने किस रंग में तू मुझको पसन्द आएगी।
सीख लिया है लड़ना तुझसे और तेरे हालातों से,
मालूम हो गया अब ऐसे ही तू आसान नही बन पाएगी।
खेलती है ज़िदंगी तू हर बार मुझे हराने के लिए,
मैं खिलाड़ी अब पुराना खेलता हूँ तुझसे सीखने के लिए।।
-