प्रेम के अनेक समानार्थी शब्द हैं, जिनमें हैं मानसिक स्पष्टता, करुणा, निस्वार्थ भाव, लचीलापन, ध्यान, स्वीकृति तथा समझदारी। यह इसलिए इतना शक्तिशाली होता है, क्योंकि यह पानी की तरह टिकाऊ और लचीला दोनों होता है। प्रेम संपूर्ण तथा पोषक रूप में लोगों को जोड़कर रखने के लिए जो चाहे रूप ले लेता है। लेकिन इंसान जटिल होता है और हम लोग उत्तरजीवी प्रवृत्तियों के बोझ को ढोते चलते हैं। प्रेम मुक्ति है जबकि आसक्ति नियंत्रण - सभी इंसान जो किसी रिश्ते से बंधते हैं, उनमें इन दोनों का मिश्रण होता है।
जो दर्द हम लेकर चलते हैं, वह प्रेम को बाधित कर देता है। हमें जो तकलीफ़ हो रही होती है उसके लिए प्रेम को दोष देना आसान होता है, लेकिन प्रेम केवल सबकुछ खोल देता है। तकलीफ़ या चोट गहरी मानसिकता और दुर्भाग्यशाली आदतों के कारण पैदा होती हैं, जो हमें सहिष्णु ढंग से अपने आपको दिखाने से रोकती हैं। कोई आदमी प्यार में हो सकता है और यह भी है कि वह उस प्यार की परवाह करने के लिए तैयार नहीं...
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