एक बड़ी विडंबना है जीवन की,
मनुष्य सोचता है जीवन को;
प्रयास करता है पा जाने का,
एक अर्थ, जो यथार्थ हो,
और जीवन का एकल सत्य भी!
परंतु बहुत सोचने पर भी
नहीं पाता वो,
जो वो कभी अनायास ही पा जाता है,
बिना प्रयास के, बिना चिंतन के!
अजीब है जीवन राग भी
क्या सुर है? क्या ताल है?
मानव समझ ले तो संसार स्वर्ग के बराबर,
ना समझे तो एक पहेली।
पर यही शायद सुंदरता भी है जीवन की
और आवश्यकता भी;
कि अनभिज्ञ मनुष्य ही,
मानव चरित्र का असल रचियता है।
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