मेरे आंखों में तेरे दीदार की वो तलब अब रही नहीं
लबों पे भी तेरे कशिश की वो तलब अब रही नही
बिन पिए ही चढ़ा था जो उतर गया वो नशा
तेरे बेपनाह हुस्न की वो तलब अब रही नहीं
रिसता नहीं है अब दर्द-ए-ग़म बन कर आंसू
मेरे आह पे तेरे वाह की वो तलब अब रही नहीं
जिस वादे के पीछे छूटा सब, मुफ़्लिस हुए, बर्बाद हुए,
छोड़ गया वो इश्क़ भी,मुहब्बत की वो तलब अब रही नहीं
न जुनून, न फितूर, न आरज़ू, न जुस्तजू है बाकी
बस जी रहे है, जिंदगी की वो तलब अब रही नहीं
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