जब तुम गडाए रहते हो नज़र,
चमचमाती हुई स्क्रीन पर।
तुम्हारी आँखें व्यस्त रहती हैं किसी चर्चा में ,
तुम्हारे कान मेरी आवाज़ नहीं सुन पाते ।
जाने कौन सी धुन है जिसमें तुम, मगन रहते हो,
हमेशा दिन से रात, रात से दिन तक।
मेरी ध्वनि की आवृत्ति बहुत कम हो गई है,
मेरी उपस्थिति शून्य के समान है तुम्हारे लिए।
जिस पर तुम टकटकी लगाए देखते रहते हो,
वो मुझसे अधिक महत्वपूर्ण हो गया है ।
तुम्हारे बावजूद मैं अकेली हूँ,
ये घर अब काटने को दौड़ता है।
तुम्हारे और मेरे मध्य ही तो संवादों की अल्पता है ,
तो क्या हुआ मैंने दीवारों से बातें करना शुरू कर दिया है।
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