दीवारें ढ़ह गयी सारी,ज़मीन धस गयी
जाले हट गये सारे रात, रात हो गयी।
फूलों पर भंवरे नहीं बैठते
तितलियाँ एक ही रंग की नज़र आती है सारी
पंखे को अब घंटों घूरना छोड़ दिया
खिड़की से किसी का इंतज़ार नहीं किया
हाथों से बर्तन नहीं छूटते
अकेले में ख़ुद से बाते करना ज़्यादा हो गया।
बहुत कुछ है जो बदल गया
बस आँखें वही है मेरी ।
-