~* ख़्वाब *~
मैं अकेला ख़्वाब लेकर ,चल रहा हूं आज लेकर
ख़्वाब तो सब एक ही है,बंट गया क्यूं आस लेकर..
एक ख़्वाब उस तरफ है,एक ख़्वाब में जी रहा..
ख़्वाब ही में ज़िन्दगी, ख़्वाब ही में बिक रहा..
जब परोसू ख़्वाब को मैं, ज़िन्दगी के सामने,
ज़िन्दगी डरने लगी फिर,ज़िन्दगी के सामने,
रात, चांद, चांदनी..सब रखी है ताख पे,
टिमटिमाते ख़्वाब को,रख दिया है ख़ाक पे
लौ जला के ख़्वाब के,उन ख़्वाब को मिला सकूं,
जब जगूं मैं नींद से, तो ख़्वाब को जिला सकूं..
ख़्वाब मेरी रोशनी, ख़्वाब ही मशाल है,
ज़िन्दगी जब खत्म हो,तो ख़्वाब जैसा हाल हो.
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