YuKti Gaur   (©युkkti गौR)
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Joined 18 December 2016


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Joined 18 December 2016
30 MAY 2023 AT 0:06

उसने मुझसे पूछा
तुम्हें इश्क़ में क्या बनना है?

मैंने बुझी हुई आँखों से
अपनी लकीरों से भरी हथेली निहारी और कहा-

मुझे नहीं पता
पर मुझे हीर, लैला या शिरी नहीं बनना

अगर कुछ बन सकी तो

मुझे इश्क़ में "अमृता" बनना है
जहाँ मैं गुम हो सकूँ तुम्हारी सिगरेट के धुएँ में
या
मेरी कविताओं के शब्दों में छिपा लूँ तुम्हें
या फिर
अनायास ही लिख दूँ तुम्हारा नाम कहीं..

पर..
शायद ना कर पाऊं मैं ये सब कभी

आखिर इश्क़ में "अमृता" होना आसान नहीं

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19 MAR 2023 AT 11:58

काश फ़िर वापस लौटा जा सकता कुछ मीठी यादों में
ये अब वाली ज़िन्दगी तो बस फिकी फिकी सी है

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16 SEP 2022 AT 18:03

"ज़िन्दगी से एक सुकून माँगा था हमने
ज़िन्दगी में एक सुकून ही ना मिला हमको"

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13 FEB 2022 AT 13:44

"दुनिया की सबसे कठोर लड़कियों को मिलने चाहिए सबसे शालीनता से चूमने वाले लड़के,

जो पिघला सके उनका बर्फ-सा कठोर हृदय मात्र एक चुम्बन से"— % &

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19 OCT 2020 AT 13:43

ये नज़रें चौखट पर टिकी रहीं
तुम्हारे आने की अधूरी उम्मीद रही

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14 JUL 2021 AT 21:07

उनसे मिलने की एक उम्मीद जगाये बैठे हैं
तूफानों में एक चराग जलाए बैठे हैं

जानते हैं कि रहेगा ये सफर अधूरा ही
हम रास्तों को मंज़िलें बनाए बैठे हैं

कहने को था बहुत पर लब खामोश रहे
जाने क्यों हम आँखों को ज़ुबाँ बनाए बैठे हैं

दिल लगाना कोई बड़ी बात तो नहीं थी वैसे
हम अपनों से नहीं दिल गैरों से लगाए बैठे हैं

ख़्वाब में वो आएं तो ज़रा पूछ लें उनसे
आखिर मसला क्या है क्यों यूँ नज़रें चुराए बैठे हैं

मैं जानती हूँ कि तकदीर में नहीं वो मेरी
फिर भी एक उम्मीद ख़ुदा से लगाए बैठे हैं

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30 JUN 2021 AT 22:10

मैंने देखा एक आदमी को तोड़ते पत्थर
ज़ोर से करते वार उस पत्थर पर
उसके हाथों में बन चुके थे गहरे घाव

कुछ ऐसा ही होता होगा लोगों के साथ भी
जब वे तोड़ कर जाते होंगे अपने प्रिय शख़्स को
दूसरों को ज़ख़्मी करते वक़्त
कुछ घाव ज़रूर बन जाते होंगे
उनके हृदय पर भी

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30 JUN 2021 AT 21:25

चलो माना!
मेरा चैन छीन कर,
करार तुम पा लोगे
पर सच बताओ..
ख़ुद से फिर नज़रें मिला लोगे?

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30 JUN 2021 AT 9:41

मैंने खोया है अपना हिस्सा एक अजनबी शहर में
अब ख़ुद को ढूंढने को मुझे दर-ब-दर भटकना होगा

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4 MAR 2021 AT 21:12

कभी बनी ग़मों का हमराही
कभी आंसुओं का साथी

लोग मिलते हैं मुझसे
अपनी सहूलियत के हिसाब से

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