नज़राना ही तो पेश किया था,अफसाने कैस् बन गए ||दिल से निकले शब्द आज,बहाने कैसे बन गए ||हवस भरी आँखों ने घूरा मुझे;पर वो तो अंधे थे,इस कदर मेरे दीवाने कैसे बन गए || - yashu
नज़राना ही तो पेश किया था,अफसाने कैस् बन गए ||दिल से निकले शब्द आज,बहाने कैसे बन गए ||हवस भरी आँखों ने घूरा मुझे;पर वो तो अंधे थे,इस कदर मेरे दीवाने कैसे बन गए ||
- yashu