यादों को जिंदा रखने की तरकीब है दर्द को कुरेदा जाए आग बुझ जाए तो फिर राख के सिवा हासिल क्या है ..!! -
यादों को जिंदा रखने की तरकीब है दर्द को कुरेदा जाए आग बुझ जाए तो फिर राख के सिवा हासिल क्या है ..!!
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उस नींद की भी क्या पनाह होती है? जो जाग के शब भर तबाह होती है.! -
उस नींद की भी क्या पनाह होती है? जो जाग के शब भर तबाह होती है.!
....भंवरे मेरा पता पूछते हैंमैंने तेरे बालों में फूल लगाए थे कभी! -
....भंवरे मेरा पता पूछते हैंमैंने तेरे बालों में फूल लगाए थे कभी!
..हाशिये पर हम -
..हाशिये पर हम
..अब रिहा करिये रात से नींदों के सायों कोसुबह अपने हिस्से उम्मीदों का सूरज मांगती है -
..अब रिहा करिये रात से नींदों के सायों कोसुबह अपने हिस्से उम्मीदों का सूरज मांगती है
..कितने खत जलाये मैंनेऔर कितने बाकी रह गए.. तुमने उनवाँ ही बदल दिये जब..हम और क्या हिसाब देते.! -
..कितने खत जलाये मैंनेऔर कितने बाकी रह गए.. तुमने उनवाँ ही बदल दिये जब..हम और क्या हिसाब देते.!
..लाख खरोंचे लगा लोगेतोड़ोगे फोड़ोगे जिस्म कोस्त्री जैसा मजबूत मन ..कहाँ से लाओगे..!! -
..लाख खरोंचे लगा लोगेतोड़ोगे फोड़ोगे जिस्म कोस्त्री जैसा मजबूत मन ..कहाँ से लाओगे..!!
..तुम खिल आयी होआज नन्ही कलीमेरे मस्तिष्क केअन्तिम छोर पर उत्पन्न...हर सूखे विचार में जैसेपूरा बसंत खिला हो! -
..तुम खिल आयी होआज नन्ही कलीमेरे मस्तिष्क केअन्तिम छोर पर उत्पन्न...हर सूखे विचार में जैसेपूरा बसंत खिला हो!
हमसे मिलिए और डूब जाईयेहमको शुमार करिये खुद में..अपनी बुरी लतों की तरह -
हमसे मिलिए और डूब जाईयेहमको शुमार करिये खुद में..अपनी बुरी लतों की तरह
दिन में झुलसा देता है बदनरात भी मरहम ना लगा पायेगीमेरा हमराह बना है ..ये दर्द मेरा..हर जगह से सिलता हूँ सिरा गरफिर भी कहीं से उधड़ ही जाता हैपूरे जिस्म में फैलता जाता हैक्या *दर्द की*कोई परिधि नहीं होती!? -
दिन में झुलसा देता है बदनरात भी मरहम ना लगा पायेगीमेरा हमराह बना है ..ये दर्द मेरा..हर जगह से सिलता हूँ सिरा गरफिर भी कहीं से उधड़ ही जाता हैपूरे जिस्म में फैलता जाता हैक्या *दर्द की*कोई परिधि नहीं होती!?