बुरांस  
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Joined 21 March 2018


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2 MAY AT 20:15

यादों को जिंदा रखने की तरकीब है दर्द को कुरेदा जाए
आग बुझ जाए तो फिर राख के सिवा हासिल क्या है ..!!

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1 MAY AT 13:18

उस नींद की भी क्या पनाह होती है?
जो जाग के शब भर तबाह होती है.!

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30 APR AT 21:01

....भंवरे मेरा पता पूछते हैं
मैंने तेरे बालों में फूल लगाए थे कभी!

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28 APR AT 13:16

..हाशिये पर हम

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26 APR AT 9:22

..अब रिहा करिये रात से नींदों के सायों को
सुबह अपने हिस्से उम्मीदों का सूरज मांगती है

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23 APR AT 18:30

..कितने खत जलाये मैंने
और कितने बाकी रह गए..
तुमने उनवाँ ही बदल दिये जब
..हम और क्या हिसाब देते.!

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23 APR AT 11:12

..लाख खरोंचे लगा लोगे
तोड़ोगे फोड़ोगे जिस्म को
स्त्री जैसा मजबूत मन
..कहाँ से लाओगे..!!

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22 APR AT 9:58

..तुम खिल आयी हो
आज नन्ही कली
मेरे मस्तिष्क के
अन्तिम छोर पर उत्पन्न
...हर सूखे विचार में जैसे
पूरा बसंत खिला हो!

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20 APR AT 18:47

हमसे मिलिए और डूब जाईये
हमको शुमार करिये खुद में
..अपनी बुरी लतों की तरह

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20 APR AT 10:58

दिन में झुलसा देता है बदन
रात भी मरहम ना लगा पायेगी
मेरा हमराह बना है ..ये दर्द मेरा
..हर जगह से सिलता हूँ सिरा गर
फिर भी कहीं से उधड़ ही जाता है
पूरे जिस्म में फैलता जाता है
क्या *दर्द की*कोई परिधि नहीं होती!?

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