Vineet Sharma   (विनीत "प्रेमासक्त")
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Joined 17 May 2017


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19 MAR AT 19:31

इतना गहरा क्यों उतर रहा है!
रुक जा, ठहर जा, न जा,
आगे गया तो लौट न पाएगा,
खुद को खुद में ढूंढ लेगा,
फिर कहाँ संसार समझ आएगा,
आईने में देखेगा जब खुद को,
खुद ही पर ऊँगली उठाएगा,
बात मान और पलट जा,
वरना सब छूट जाएगा...

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8 MAR AT 11:57

हसरत-ए-दीदार

मिलने को तुमसे हम हर लम्हा यूँ बेक़रार बैठे हैं,
रात कट न रही हम सुबह के इंतज़ार में बैठे हैं,
वो सुर्ख़ लब और उस पर वो तबस्सुम तुम्हारा,
उफ़! उस लब को छूने को हम मिलन के इंतज़ार में बैठे हैं,
वो मख़मली आरिज़ और उस पर चहलकदमी करती लटें,
हाय! उनको सहलाने को हम महीनों से इंतज़ार में बैठे हैं,
शगुफ़्ता गुलाब सा हुस्न और उस पर वो क़ातिलाना अदाएं,
इल्म मुझे खुद भी नहीं, कब से हम हसरत-ए-दीदार में बैठे हैं|

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6 MAR AT 22:20

ख़ुद से कैसी दुरी है,
हाए! ये कैसी मजबूरी है,
मैं चाहूँ अगर भी कि ख़ुद से मिल आऊँ,
बुद्धि भ्रस्ट मेरी कहती ये ग़ैर-ज़रूरी है,
विवेक मेरा जाने कहाँ गुप्त हो चूका है,
कामनाओं की गिरफ्त में आ लुप्त हो चूका है,
मन जाने कहाँ-कहाँ दौड़ रहा, क्या-क्या चाहता है!
मोह-माया की दुनिया में ख़ुद संग मुझे भी फंसाता है,
दूर बहुत दूर आ चूका अब लौट आना जरुरी है,
मगर ख़ुद से ख़ुद की ये दुरी बन चुकी मजबूरी है...

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5 MAR AT 19:36

यादों की दोपहर में,
एक प्याली गर्म चाय के संग,
बीते मेरे कुछ लम्हें,
मेरी ही कहानी के संग....


पूरी कविता पढ़िए caption में..

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4 MAR AT 21:40

ये शहर ऐसा है

ये शहर ऐसा है, कुछ मेरे ही जैसा है,
आओ बताता हूँ ये आखिर कैसे मेरे सा है!
कभी तन्हा-अकेला सा लगता है,
कभी लगा हो मेला सा लगता है,
कभी हँसता-मुस्कुराता रात जागता है,
कभी रोता-बिलखता दिन काटता है,
कभी बेमतलब, बिन मौसम बरसात हो जाती है,
कभी एक बूँद के लिए मेरी आँखों सी तरस जाती है,
कभी भागती-दौड़ती ख़ुशी या गम सब भूल जाती है,
कभी चुप-चाप शांत मन सी खुद को ही समझाती है,
अब कितना और कैसे बताऊँ, कि ये शहर कैसा है,
ये शहर ऐसा है, कुछ नहीं बिलकुल मेरे जैसा है ...

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3 MAR AT 21:17

क्या लाज़िम है?

दिन-रात हो फ़िज़ूल-बेफ़िज़ूल बातें, ये कहाँ लाज़िम है!
एकटक बस एक-दूजे को ताकें, ये कहाँ लाज़िम है!
इश्क़ है माना मगर हो बचकाना, ये कहाँ लाज़िम है!
हर हाँ में हाँ और न में न मिलाना! ये कहाँ लाज़िम है!

है प्रेम अगर तो बूझो ये कि क्या लाज़िम है?

सूकून भरी बातें और पक्के इरादे, हाँ ये लाज़िम है,
एक-दूजे के लक्ष्य को संग मिल साधे, हाँ ये लाज़िम है,
इश्क़ है बताना मगर कभी न जताना, हाँ ये लाज़िम है,
राय हो अलग-अलग तो उससे बिफर न जाना, हाँ ये लाज़िम है...

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2 MAR AT 18:59

कहाँ किस सोच में डूबे हो,
क्यों यूँ रोज, हर रोज अधूरे हो,
जरुरी कोई नहीं, बस तुम हो ये मानो,
लड़ना खुद से बंद करो, खुद को पहचानो|

अपने ख़्वाबों को यूँ न मर जाने दो,
बेबुनियाद बातों को घरोंदा खुद में न बनाने दो,
उलझनों को सुलझाना है तो प्राथमिकताएँ पहचानो,
इन्द्रिय, मन, बुद्धि से परे अपने अंतर्मन को जानो|

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1 MAR AT 10:33

जुदा होने की ख़्वाहिश है,
ख़्वाहिश है फिर से मिलने की, मगर
कुछ वक़्त बीत जाए,
कुछ ज़ख़्म भर जाए,
कुछ सपने फिर से जागे,
कुछ पक्के हो जाए नाजुक धागे...

जुदा होने की ख़्वाहिश है,
ख़्वाहिश है फिर से मिलने की, मगर
फ़ितूर जो है वो सब मिट जाए,
आज़माएँ नहीं, एक-दूजे को अपनाएँ,
बेहिचक हो बातें, बिन डरे-बिन घबराए,
आरोप-प्रत्यारोप से परे बस प्रेम की ज्योत जलाएँ...

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26 SEP 2023 AT 14:57

सपने तेरे बन चुके हैं ख़्वाब मेरे,
चल मिलकर करते हैं इन्हें पुरे...

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25 SEP 2023 AT 10:16

मैं, मेरा मूड, मेरी धड़कन,
सब खिल जाते हैं तेरी तस्वीरें देखकर ...

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