जब तुम टूटने लगोगे, सबकुछ हारने लगोगे, तब तुम्हें याद आएगा गांव, तुम्हें याद आएगा सबका साथ, बीते बचपन के दिन, पुरानी बातें और बहुत कुछ, पर तुम चाह कर भी नहीं लौट पाओगे वापस, नहीं जुटा पाओगे हिम्मत कह पाने की चार लोगों से, कि तुम छोड़ आए चका-चौंध भरी दुनिया, तुम निकल आए उस दलदल से जिसमें तुम धंसते जा रहे थे दिन ब दिन, जहां दबते जा रहे थे बोझ के तले ज़िम्मेदारियों के, उम्मीदों के, सपनों के, सोच के और समर्पण के…पर चाह कर भी नहीं लौट पाओगे वापस कभी…जब तुम टूटने लगोगे…
उदित…
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