29 APR 2017 AT 13:59

तेरी बहती जीवन धार का उदगम हूँ में,
व्यथीत तेरे मन में धारण संयम हूँ में।
में हूँ सवेरा तेरी हर अँधेरी रात का,
में हूँ जवाब तेरी हर अनकही बात का।
हूँ अक्स में उस शक्ति का जिसका तुझे गुरुर हैं,
पहचान मेरे अस्तित्व को किस दंभ में मगरूर हैं।

आयत हूँ में हूँ श्लोक भी,
पग तले चारों लोक भी।
जननी हूँ में विध्वंसिका भी हूँ,
हूँ नीर और शिखा भी हूँ।
में हूँ क्षितिज अवनि हूँ में,
तेरे भीतर मोजूद अग्नि हूँ में।
किस अभिमान में तू हैं पला,
मेरे रक्त की हैं तू कला।

हूँ तेरे कंधो से बड़ी तू क्या उसे मिलाएगा,
हूँ अन्नपूर्णा में तू क्या मुझे खिलायेगा।
पुजारी तू जिन मंदिरों का उनसे बड़ा मेरा वजूद हैं,
नौ देवियों की शक्तियाँ इस शरीर में मोजूद हैं।
हूँ उसका जीवित अंश में जिसके नाम पर नवरात्र हैं,
तेरे सम्मान की बस आस हैं दया के ना हम पात्र हैं।

तू पूज ना इन चरणों को तू मत खिला कन्याभोज में,
अब दंभ को त्याग भी दे हूँ नहीं कोई बोझ में,
बस हम कदम बन साथ चल सुनहरे भविष्य की खोज में।

-वैदेही खंडेलवाल




-