मेरा पसंदीदा दिसंबर का महीना है
तन्हाई साथ हमदर्द की तरह है,
गर्माहट है कुछ सुलगते ग़मों की
चाय की महक ने यादों को छुआ है,
ना कुछ खोने के लिये बचा है अब
ना ही पाने के लिये कुछ अपना सा है,
डर किसी बात का नहीं जिन्दगी में
लोगों से भी राबता कुछ कम हुआ है,
एकाध रिश्ते हैं जो जुड़े हैं रूह से
सिर्फ़ एक अहसास मासूम जिम्मेदारी का है,
कोइ शख्स नहीं,हमराज़ मेरी एक डायरी है
उसमें कुछ बनती हुई गज़ल और शायरी है,
आधी उमर जी ली मैंने इन्हीं सब बातों में
अभी आधी उमर की जद्दोजहद जारी है
पहले शिकवा था किस्मत से बेहद मग़र
अब जाने क्यों सुकून से भरी जिन्दगानी है❤
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