मेरे भाई! नहीं मैं नहीं जानता कुछ नहीं जानता मुझसे पूछो न कुछ मुझसे कुछ मत कहो जो भी दिल में तुम्हारे है तुम वो करो मेरा तुम पे कोई हक़ नहीं न ही दुनिया पे है मैंने दुनिया बनाई नहीं और न इसके बिगड़ने से कुछ वास्ता है मुझे
यानी?
यानी कुछ भी नहीं कि यहाँ के सफ़ेदो-सियह में मिरा दख़्ल कुछ भी नहीं कुछ न कुछ हो रहेगा कि गर्दिश में हैं सात आसमाँ रात-दिन मैं किसी को बचाने का दावा करूँ भी तो कैसे करूँ मैं कहाँ ख़ुद भी ज़िंदा हूँ और इस सड़ी लाश को भी अगर ग़ोल गिध्दों के छोड़ें नहीं नोच डालें कभी कोई हैरत नहीं मुझमें ग़ैरत नहीं
सुन ले बात कमल के फूल!! कुछ दिन सिंहासन जा भूल।। ऐसे ना हैरत दिखला। थोड़ी तो ग़ैरत दिखला।। आस्तीन जो उलट रहे हैं उन्हें तंग हो जाने दे। मण्डप नीचे रखा हुआ ये धनुष भंग हो जाने दे।।
सफ़ीना ख़ुद डुबो लेते हैं साहिल छोड़ देते हैं। हो कितनी खूबसूरत कोई महफ़िल छोड़ देते हैं।। अभी वाकिफ़ नहीं शायद हमारी ग़ैरतों से तुम। अगर हों बेअदब राहें तो मंज़िल छोड़ देते हैं।।