हाथ थामकर... एक हमदर्द,
एक दोस्त,एक हमसफर बन जाती है,
अपने मुँह का निवाला भी खिला दे जो,
ख़ुशी देखकर हमारी,पेट अपना भर लेती है,
वो माँ है...
धूप में छाव बन जाती है,जब माँ पास होती है,
दुआओं में असर इतना,कि हर मुशिकल आसां हो जाती है,
तक़लीफ़ में हमारी आँख उसकी भर जाती है,
रात भर जागकर जो सिर सहलाती है,
वो माँ है...
लौटने को घर,देर हो जाए अगर,
निहारती एक टक रास्ते को,जो राह देखती है,
अपने दिल के टुकड़े का हाथ किसी दूसरे को सौंपकर,
सुबह शाम दुआ ख़ैरियत की जो करती है,
वो माँ है...
औलाद कैसी भी हो,दुनिया साथ छोड़ दे जब,
उस मासूम बच्चे को भी सीने से लगाकर जो पालती है,
बेतहाशा दर्द को सहकर भी,बच्चे की एक झलक देखकर,
जो पल में हर दर्द भूल जाती है,
वो माँ है...
मानती हूँ ख़ुद को ख़ुशनसीब और मालामाल भी,
ख़ुदा ने बक्शी हमें शख्शियत जो इतनी ख़ास है..
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