रात भर जो करवटों के फंदों से सिलवटों की स्वेटर बुनी है ना तुमने उन्हें बिना तह लगाए रख दो अलमारी में या फिर डाल दो किसी पेटी में सबसे छुपाकार कहीं कोई तह लगाकर इन्हें सही न करदे अभी तो पूरी सर्दी गुज़ारनी है इस गर्माहट से।
मीठी सी ठंडी हवा चलने लगी देखो ज़रा , जिस्म में कम्पन का , एहसास हुआ तब ज़रा -ज़रा , मैने भी तुम्हारी फिक्र में , मीठी हवाओं की चासनी के , तार वाली Scale से , ख्यालों में तुम्हारे बदन का , माप लिया है , फिर नर्म अपनी उँगलियों से , नर्म रंग बिरंगे ऊन के गोलो से , मैने प्रेम में प्रेम से , तुम्हारे लिये मोहब्बत का , अपना पहला Sweater बनाया है ।
सुनों बड़ी हिफाज़त से बुना था वो स्वेटर.. हाँ, नज़ाकत से भी... एक एक, फंदे को एक मे ऊलझा रही थी,, और तुझे,,,या मुझे,,, जाने किसे... शायद,, खुद को सुलझा रही थी,,, हर फंदे से... एक नया फंदा... बुनते हुए, मैं, तुझे बुनती थी... (पूरी रचना अनुशीर्षक में)
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