किसी से शिकवा नहीं हमें गिला सिर्फ़ अपने हालात से है। यूं वक़्त-बेवक़्त चले आते हैं हम परेशां हर खयालात से है। कोई ज़वाब नहीं है जिनका हम नाराज़ उन सवालात से है। क्या ख़ूब साज़िश की क़िस्मत ने हम हैरां इसके करामात से है। अश्क़ों ने भी दम तोड़ दिया फिर ज़िन्दा क्यों ज़ज़्बात से है? ये किसकी ख़ता कहे के हम अब ख़फा पूरे क़ायनात से है।