वाकिफ नही हम कागज़ के दर्द से ना जाने कितने दर्द समेट रखे है ये तो बस कागज़ ही जानता है कितने रंगों से सज़ा होता है दर्द कोई नही जानता कागज़ का दर्द
जब दर्द बेदर्द लगने लगे तो इन कागज़ों में हम अपने दर्द को शब्दों का रूप देकर बयान कर देते है सब का दर्द सह जाता है कागज़ बिना किसी शिकायत के जाने कितने दर्द समेट रखें है खुद मे कोई नही जानता कागज़ का दर्द