आज कल तो सफल होने के मायने ही बदल गए हैं,
जो इंसान ""पर्याप्त भोजन"" खा कर जीवत रह सकता है , वो पर्याप्त से ज्यादा खाकर या पाकर ख़ुद को सफल बताता है ,,,
जो इंसान ""पर्याप्त जगह "" में रहकर अपना पूरा जीवन खुशहाली से बिता सकता है, वो पर्याप्त से ज्यादा लेकर खुद को सफल बताता है,,,
जो इंसान ""पर्याप्त कपड़े"" पहन कर रह सकते हैं, वो पर्याप्त से ज्यादा कपड़े लेकर ख़ुद को सफल बताते हैं,,,
ऐसी काफ़ी चीज़े हैं जो पर्याप्त से ज्यादा प्रयोग करके ख़ुद को सफल बताते हैं,,,
और ये पर्याप्त से ज्यादा चीज़े हमें वास्तविक सुख नहीं दे पाती बल्कि ये बीमारी और हमारे दुख़ के कारण बन जाती हैं,
और ये वही चीज़े हैं जो समाज को अमीरी और गरीबी देती है,,
किसी को भीख में कुछ देने के बजाए ख़ुद को पर्याप्त में ही रखकर जीवन में खुश और सबसे बड़ा दान होगा ।।।।।
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