मैंने 'आरती' भी सुनी है, मैंने 'नमाज' भी पढ़ा है। मैंने यहाँ हर 'शख्स' के लिए 'इंसाफ' भी लड़ा है। 'नफ़रत की आग' लगाकर लोग वोट पा गए और, मेरे स्वागत में पत्थर उठाये, पूरा समाज खड़ा है।
कोई चौखट पर सालों से इंसाफ का गुहार लगा रहा । कोई बिना जुर्म किये जेल में होंली दीवाली मना रहा । सोकर जाग गए आप तो फिर सत्ता का संताप सता रहा । कोई अचानक से आकर 'लोकतंत्र' को खतरे में बता रहा ।
कौन "मूर्ख" कहता है की हमारे देश ने तरक्की नहीं की, या "हुकुमत" ने कुछ "महामारी" के लिए "तैयारी" नहीं की, पिछले साल हम "मोमबत्ती, दिया, टॉर्च" जला रहे थे, इस बार "चिताएं" जला रहे, इस से बड़ी क्या हो सकती है "तरक्की"..!!! :--स्तुति