इश़्क ही है इक ख़ता, तो ये ख़ता क़ुबूल है
उम्र क़ैद अब कर ही दो, हर सज़ा क़ुबूल है
ज़ालिम हूँ मैं, क्यूँ पुकारते हो तुम मुझे
हाथ तो बढ़ाओ, मुझे हर वफ़ा क़ुबूल है
क्यूँ निहारते हो ख़ुद को देख-देख आईना
ख़ूबसूरत हो तुम, तुम्हारी हर अदा क़ुबूल है
इश़्क कर ही लिया अगर तो अब डर भी नहीं
काँटों भरी है ये फ़िजा, तो हर फ़िजा क़ुबूल है
दर्द-ए-दिल का कोई इलाज करवाओ "आरिफ़"
गर ज़हर ही है इक दवा, तो हर दवा क़ुबूल है
ज़िन्दगी तो बहुत मीठी है थोड़ी सी तो चखी
गर मिठास ही है इक नश़ा, तो हर नश़ा क़ुबूल है
"कोरे काग़ज़" पर लिखकर भेजता हूँ हर ख़ता
गर कलम ही है इक दुआ, तो हर दुआ क़ुबूल है
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