तन्हा सफर
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एहसास दिल के, परे हैं मेरे,
कुछ भरा कुछ खाली सा,
ये मन मेरा कोई सवाली सा।
खुद करता बात ये खुदसे,
कभी तन्हाई में गाता है,
कभी मुस्कुराता दीवानगी में,
कभी खुद ही ऊब जाता है।
समझाऊँ इसे या सम्भालूँ मैं अब,
ख्वाबों से दूर, इसे पालूँ मैं अब,
उत्तेजित है यह खुद के भृम में,
सच्चाई को कैसे टालूँ मैं अब।
कोई रास्ता दो, मन्ज़िल पहचाने,
थोड़ा खुदको गौर से जाने,
क्यों मायाजाल में दबकर रहना,
कुछ नया करें, कुछ नया अब ठाने।
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