तेरी दी गई ज़िन्दगी तुझे मुबारक मेरे खुदा, अब इसे जीने की तमन्ना ना रही । कब तक सीधी चलूँ इन टेढी लकीरों पर , अब मैं इन राहों की मुसाफ़िर ना रही। दोहरे चेहरे ही दिखे तेरी दुनिया में सभी के , अब किसी सच्चे शख़्स की फ़रमाइश ना रही।
सहते-सहते जब मर जाएँ अन्तर्व्यथायें पीड़ा, दुःख, उदासी इन शब्दों से ऊबने लगे मन और ख़ुशी का भी एक लम्हा लुभाये नहीं.. मैं सोचती हूँ वो शख़्श इस दौर तक आने के लिए किस-किस दौर से गुज़रा होगा..