सिली सिली शाम
भीगी भीगी रात।
हाथों में उनका हाथ,
कुछ पल का वो सुनहरा साथ।
नज़रों से हुई दिल की हर बात,
थी कुछ ऐसी हमारी वो मुलाक़ात।
वो साँसों की रफ़्तार का बढ़ना,
दिल धक-धक उनके नाम से करना।
असंभव को संभव में बदलकर,
ख़ामोश इश्क़ का उन अंजाम तक जाना।
ये इश्क़ नही उससे बढ़कर है कहीं,
जिसका नाम दुनिया ने अबतक न जाना।
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