लोग काफी हैं यहां,
इंसान कम है मगर।
पक्के है इरादें यहां
पर कच्ची है कोशिशों की डगर।
घड़ी के कांटे भी चल देंगे मर्ज़ी से तेरी,
किस्मत की रेत को कर लो अपनी मुट्ठी में अगर।
किस्से ज़ख्मों के काफी हैं यहां सुनाने को लेकिन
ज़माने की जरूरत है अभी कि बने एक विरोहण की नगर।
चांद को कहते हो अंधेरों में मसीहा फिर भी,
देवता का दर्जा मिला बस सूरज को मगर।
दुनिया में शक्लें सभी की एक ही है साहब,
बस शख़्सियत बदल जाती है उनकी डगर - दर - डगर।
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