मिल जाए कोई परी,
मैं इस लिए लिखता हूँ,
दिल के शुकुन के लिए नहीं,
उसकी इबादत के लिए लिखता हूँ।।
कोई तो हो जो सुने,
मेरी बातों को,जज्बातों को,
इल्म हो उसे भी लिखने की,
मैं इसलिए लिखता हूँ।
बुढ़ापे में जब तन्हा हूँगा,
बुढ़ापे की लाठी जब साँथ होगी,
उसके साथ बिताये,
हर वक़्त की चाभी साथ होंगी,
मैं इसलिए लिखता हूँ।।
जाऊंगा जब दुनिया को छोड़ कर,
मेरे और उसके लिखे किस्से,
कहीं फिर से पढ़े जाएंगे,
मैं इसलिए लिखता हूँ।।
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