लो आया दीवाली का त्यौहार,
हम निकले भरी दोपहरी,
ख़रीदने बाज़ार.....
बाजारों की गलियों में,
वो चकाचौंध की रोशनी में,
वो तंग भिड़ी गलियों में,
थोड़ी सी धक्का मुकी में,
कुछ अपनों की भीड़ में,
थोड़ी सी जल्दीबाजी में,
हम उसको देखना भूल गए,
शायद हम लेंना भूल गए,
कच्ची माटी के वो पक्के दिए,
हम घर साथ ले जाना भूल गए,
बनाकर दिए कच्ची माटी के उसने,
थोड़ी सी आस पाली हैं,
तुम उसकी मेहनत भी ख़रीदना यारो,
आख़िर उसके घर भी तो दीवाली हैं,
जला कर उसकी आस का दिया,
तुम उसके घर को भी रोशन करना,
जब होगा रोशन दिया,
किसी के आस का तुमसे,
तो समझना दीवाली हैं,
मिटे जो अंधकार मन से,
तो समझो दीवली हैं,
तन से, मन की शान्ति हैं सच्ची,
तभी तो दीवाली अच्छी।
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