एक मुसाफिर या एक राहगीर
सोचो तो कौन हूँ, मैं आज फिर।
मुसाफिर की तरह दर-दर भटक रहा हूँ ,
उस तिलिस्म को पाने की हर मुनकिन कोशिश कर रहा हूँ ।
जीवन के नए अध्याय खोल रहा हूँ ,
राहगीर की तरह भटको को राह दिखा रहा हो ,
अपने अनुभवों से औरों को उजागर कर रहा हूँ ,
उस चमत्कारी तिलिस्म देखने की चाह मैं आगे बढ़ रहा हूँ ,
रोज उसका राज़ खोज रहा हूँ ।
-