मैं किताबें पढ़ता रह गया,
उसी में उलझता रह गया,
फर्क बस इतना रह गया,
वो बस वही पढ़ा,
जो इम्तहानों में पूछा गया।।
अपनी किस्मत की डोरी में,
खुद ही उलझता रह गया।।
तज़ुर्बा तो मिला किताबों से,
मगर वो,वहीं दफ़्न रह गया,
पर बात ये भी है,
वो मंजिल पा गया,
मैं किताबों की दुनिया का,
दक्ष बन गया।।
किताबों से जब प्रेरणा मिली,
तो सबों का सलाहकार बन गया।।
मैं किताबें पढ़ता रह गया,
और उसे मंजिल मिल गया,
और मैं ज्ञान के सागर का,
तालाब रह गया।।
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