अँधेरा, रौशनी के जूनून से जल रहा है, और एक चिराग़ है कि सुकून से जल रहा है! रगों में जिसकी है पानी की रवानी “राज” वही शख़्स मेरे उबलते ख़ून से जल रहा है! _राज सोनी
आकाश में जैसे चंदा धरती पे नदिया का पानी तेरी चाल में हो रवानी बस यही है जिन्दगानी|
छोटे से ही जीवन में फूल दे जाते हैं लाखों खुशियां बैठा रहे ना यूं गुमसुम उदासी में खो न घड़ियां ये जीवन तो दीवाने दुख-सुख की है कहानी कभी कम कभी ज्यादा बस यही है जिन्दगानी|
रूकने वाले को राही मंजिल मिलती नही है एक बार जो छूट जाए वो जिंदगी फिर मिलती नही है रच अपने हौंसलों से हर पल एक नई कहानी तू छू ले अपना आसमां क्यूंकि 'छोटी सी है जिन्दगानी '|.......निशि
ख़ामोश सी एक नदी का किनारा था किनारे पर खड़ा एक हरा-भरा दरख़्त था दरख़्त के नीचे एक चटाई बिछाई थी चटाई पर फूलों की सेज़ भी सजाई थी तभी एक मदमस्त हवा का झोंका आया ज़ालिम झोंके ने मासूम पंखुड़ियों को उड़ाया उड़ती-उड़ती पंखुड़ियां जा पहुंची उनके कऱीब खुली थी ज़ुल्फें जिनकी, देखता रहा मैं गऱीब बला का हुस्न था, हुस्न में ख़ुशनुमा रवानी थी शुरू हुई यहीं से हमारी मोहब्बत की कहानी थी आज भी बैठे हैं उसी नदी के किनारे मगर नदी में अब उफ़ान है दरख़्त है अभी भी वहाँ पर वो भी अब 'हरे' से अन्ज़ान है चटाई है, पर मटमैली सी फ़ूल हैं, पर मुरझाये से हवा का झोंका भी अब गर्म है हमारी तबीयत भी कुछ नर्म है लगता है जैसे कुछ कमी है मौसम में घुल रखी नमी है ना वो खुली ज़ुल्फ़ों का नज़ारा है ना उसके हुस्न के दीदार का सहारा है बैठा हूँ मैं अब भी वहाँ भूल आया हूँ अपना सारा 'जहां' इंतेज़ार है, क़रार है ख़ुदा है, उस पर ऐतबार है - साकेत गर्ग
इतेफ़ाक से मिलते-मिलते जाने कब तुमसे 'वो मुलाक़ात' हो गयी, मुलाक़ात करते-करते जाने कब तुमसे 'वो बात' हो गयी बात होते-होते जाने कब तुम 'मेरे जज़्बात' हो गयी जज़्बात बनते-बनते जाने कब तुम मेरी 'हर रात' हो गयी
अब हर रात भी तुम हो ख़्वाब-ओ-ख़्यालात भी तुम हो
मेरी सारी ज़िन्दगानी मेरी रवानी मेरी कहानी भी तुम हो - साकेत गर्ग
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