आसुरीशक्ति से दूषित मन, हर पल हर क्षण तड़पाती है।
हिंसक वाणी दूषित विचार से, दिल घायल कर जाती है।
कदम बढ़े रब के द्वारे, आशा की किरण दिख जाती है।
श्रद्धा से करूं गुणगान तेरा,हर पल क्यों मुझे सताती है।
जाऊं मंदिर मस्ज़िद गुरुद्वारा,तू नज़र कहीं न आती है।
ढूंढू व्याकुल चिंतित अधीर,ना दिखे आंख भर आती है।
नयनों में नमी होठों पे गिला,पीर हृदय की बढ़ जाती है।
अश्कों से भरी आंखें बरसे,वेदना उद्विग्न कर जाती है।
आहट की सुध अनुमान करूं,जो दुःख में मुझे सुनाती है।
मैं रहूं पास तेरे साथ साथ, अंतस से आवाज़ आती है।
डर के न रुको कभी राही,साहस से बाधा टल जाती है।
हर कष्ट सह के संघर्ष कर,हर राह सुगम हो जाती है।
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