The purity of Heart often signifies You! as a Naive
आज भी जियूँ मैं शब्द सिंचित...
फिर क्यूँ हो गये!अब मेरे स्वर किंचित...
न कुंठित हूँ...
न भयभीत मैं!
थोड़ा सा हो गया, बस अर्धमूर्छित!
किये चिन्हित,मेरे नेक विचारों को
किया शब्दों में भी,वो!खूब वर्णित
सराहा भी हर सूक्ष्म प्रयासों को
देकर सलाम इस नादान बालक को
वो कर गये थे!कुछ यूँ महिमामंडित
फिर क्यूँ मिलता,मेरे आसंग को
टुटा डोर वही और मेरे रंजित फिर से खंडित!!!
माना सब महान हैं...
उनकी अपनी जहां है...
मैं भी तो इस जहां का वासी...
फिर मेरा कहाँ निशां है!!!!
फिर करना क्या!कुपित मैं बोल उठा...
लो जियो मुर्ख!
लेकर फिर से,वैसा ही कुछ अंजाम अर्जित
वो क्यूँ ! समझ नहीं पाते हैं
मेरा उद्देश्य नहीं,होना चर्चित...
कर किसी को आहत मूर्छित
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