नही ईदगाह के हामिद के जैसा, मेरा तो कोई फ़साना था,
पर यारों के संग ले बना झुंड, मुझे मेला देखने जाना था।
उचक-उचक बन्दर संग बन्दरिया, का वो नाच सुहाना था,
हाँ याद है मुझको बचपन मे, मैं मेले का बड़ा दीवाना था।।
वो आसमान को छूते झूले, देख डरने का मात्र बहाना था,
जेब में थे जो दो रुपये मेरे, उसे जलेबी के लिए बचाना था।
वो रंग-बिरंगे, खेल-खिलौने, बस देख के मन बहलाना था,
हाँ याद है मुझको बचपन मे, मैं मेले का बड़ा दीवाना था।।
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