जिंदगी में अपने भी, सभी, अजनबी निकले,
पर मय्यत पे मेरी, जाने क्युं, सभी निकले,
प्राण निकले तो क्यों, अब सभी की जान निकले,
जब सांस थी, तब तो यह सभी, बेजान निकले....!
निकले थे हजारों खवाईशों के काफिले लेके जिंदगी,
पर नाज जिसपे था वो अब, देह भी, देके निकले,
हैं यह आंसू भी तभी तक, मरघट में,
जब तक जल रहा हूं और जब तक यह धुआँ निकले..!
-