QUOTES ON #मुसाफ़िर

#मुसाफ़िर quotes

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26 JUL 2020 AT 15:19

अनजान राहों का सफ़र मुश्किल लगता है
राही जमाने के रंगों से बे-खबर लगता है

सिमटी हो जिसकी सोच एक दायरे तक ही
उस शख्स को मस्वरा कँहा अच्छा लगता है

रोशन होते हैं कुछ जो शख्सियत से अपनी
उनको किसी परेशानी से कब ड़र लगता है

इश्क के अज़ाबों से तो सब वाकिफ़ हैं यँहा
इश्क-ए-जुनून महबूब को वो सुहाना लगता है

बादलों से बरसती हैं बारिश जब भी धरा पर
दर्द बयाँ करने का बादलों का बहाना लगता है

गुजरे लम्हो की खनक जब गूँजती है कानों में
अक्सर उन्हे महसूस करनें में जमाना लगता है

रिश्तों में दिवारे ऊँची हैं 'रूचि' आजकल
संजोना इनको ये भी हुनर पुराना लगता है

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2 AUG 2021 AT 18:05

दूर मुसाफ़िर.. नज़र से जा रहे हैं
यह आँसु भी अपने सफ़र पे जा रहे हैं,

अभी तो जिंदा हैं यह नामुराद साँसें
फ़िर क्यूँ हम सबकी ख़ैर-ओ-ख़बर से जा रहे हैं,

शहर का शहर सारा अज़नबी सा हुआ पड़ा है
यह हम अजकल.. किस डगर से जा रहे हैं,

ख्वाइशों की टहनियाँ तो अभी सुखी नहीं थी
फ़िर ना जाने क्यूँ परिंदे शज़र से जा रहे हैं!!

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22 SEP 2018 AT 8:35

हौसला रख़ ए वक्त के मुसाफ़िर,
ये जो आईना तेरे तालीम की गवाह बना हैं,
उसे जरूर एक दिन तुझपे फक्र होगा।

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3 JUN 2022 AT 6:46

चल मुसाफ़िर यह अंत नहीं है
चंद ख़्वाब टूटे... तुझे हरा नहीं सकते,
माना मुठ्ठी में जल टिकता नहीं है
पऱ यूँ नहीं है के हम एक भी बूँद... बचा नहीं सकते,

बोझ कंधों पे यह ग़मों का... इतना भी अधिक नहीं है
सारे पंछी एक पेड़ पऱ बैठकर... उसे चाहें भी तो गिरा नहीं सकते,
औऱ... पल भर की है यह अश्रुओं की बारिश
सारे मेघ इकठ्ठे होकर भी.. सूर्य को चाहकर भी दवा नहीं सकते,

यूँ ही व्यर्थ है... तू चिंतित प्राणी
सारे जुगनू मिलकर भी... अंधेरों को मिटा नहीं सकते,
सुन.. जी ना, ...है ज़िन्दगी बहुत ही खूबसूरत
यह सारे तारे एकत्रित होकर भी.. एक चाँद बना नहीं सकते,

चल मुसाफ़िर... यह अंत नहीं है
चंद ख़्वाब टूटे तुझे हरा नहीं सकते!!

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23 OCT 2020 AT 11:57

ज़िन्दगी में कितने सुखः ख़रीदे थे
क़भी.. धूप में तपे
क़भी बारिश में भीगे थे..,

जब प्राण चले अपने पथ पऱ
तब पीछे.. बस क़सीदे थे,

मनवा.. व्यर्थ ताउम्र टेड़ी चाल चले
बस.. ख़ाली ही आना-जाना है
यह दो रास्ते ही हैं.. सीधे से!!

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22 JUN 2019 AT 5:45

टुक नींद से अंखियां खोल जरा
पल अपने प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीति नही
जग जागत है तू सोवत है
उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई
अब रैन कहा जो सोवत है

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14 JUL 2020 AT 10:18

कि इश्क़ में मैं मंज़िल ढूंढ़ने चली हूँ,
बंजारन थी, अब मुसाफ़िर बनने चली हूँ।

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12 MAR 2022 AT 18:48

क्या है यह ज़िन्दगी...
बस हर तरफ़ ख़्वाब-ओ- ख़्वाइशों से लदीं गाड़ियाँ हैं
कुछ तय कर गयीं रास्ता... कुछ सफ़र में सवारियाँ हैं,

मोहपाश से बंधे.. छोड़ कर राह जाएं कहाँ
निभाने को अथाह फ़र्ज हैं.. अन्तहीन जिम्मेदारियाँ हैं,

जी भर के चख ले स्वाद बचपन का
...जवानी के मनभर ले मज़े
फ़िर तो यार... इस अहल-ए-महफ़िल से
बस निकलने की तैयारियाँ हैं!

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13 AUG 2020 AT 6:09

टुक नींद से अंखियां खोल जरा
पल अपने प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीति नही
जग जागत है तू सोवत है
उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई
अब रैन कहा जो सोवत है

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29 MAR 2019 AT 8:59

सांझ का मातम आसमां से उतरने लगा।
सवेरा उम्मीदों का शायद ढलने लगा।।

गति कदमों की अब शिथिल हो गई,
वो मुसाफिर थका सा जो दिखने लगा।

हवाओं में था शोरगुल ये बहुत,
कि वो शाखों से इश्क फरमाने लगा।

दरख़्तों ने समझी ना चाहत पुरानी,
वो बन्दी रिवाजों में जकड़ा बेबस लगा।

भटकता रहा एक मुद्दत से घर को,
कि अबके पता उस मकां का मिला।

पुकारा बहुत उस चौखट पर रुककर,
वो बहरों का कुनबा बेगाना लगा।

शातिर खिलाड़ी था दावों से वाकिफ,
जीत जाहिर जमाने में करता रहा।

चालों में अपनों की उलझा हुआ,
जिन्दगी से वो हारा जुआरी लगा।।

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