कल तक लिंचिंग बड़ा प्रश्न था
और आज है शून्य,
साहब मैं पूछता हूँ आप लोगों से
आप लोगों के पास कोई पैमाना है क्या
लिंचिंग मापने का..?
क्या उन लिंचिंगों में ज्यादा दर्द था
जब आपकी कराहे निकल रही थी
चीख चीख कर तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से
मैं जानना चाहता हूँ तमाम सेक्यूलर बुद्धिजीवियों से
कहाँ से लाते हो इतना दोगलापन..?
कब तक केवल एक पक्ष की बात करके
उनके गलत होने पर भी
उनके हक़ हुक़ूक़ के लिए लड़ लड़ के
अपने आप सेक्यूलर बने रहोगे..?
और धकेलते रहेंगे पूरे समाज को
भेदभाव और वैमनस्यता के दलदल में...?
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