थान के थान कपड़े पहन लेने के बाद भी टंच माल .. कहलायी जाती है स्त्री .. स्त्री जाति समझ से परे है वे लोग जो कहते है कम कपड़े पहनने वाली स्त्री जाति समस्त पुरुष जाति को उकसाने के अलावा कुछ नहीं करती .. अब बलात्कार न हो तो क्या हो ..
आज उस भाई की बहन माल हो गई जो भाई कन्याओं को माल कहता था हर वह पिता भी मालामाल हो गया जो कन्या को माल हर हाल कहता था सहवासरत हुई होगी उसकी बहन तभी उसका भांजा आया होगा उस भाई का वह भांजा उसके बहनोई का जाया होगा वह अपनी माँ की माहवारी से उत्पन्न अपने पिता के ओज से पाया तन उसकी माँ की चरमावस्था उसके पिता के उन्माद की कथा वह जो कहता है माल हर हाल यही है चाल
शायद नया 'माल' है, मैंने देखा अब आप देखिए, दो चार ताने कसिये, जी भर के आँखें सेकिए, और फ़िक्र कीजिएगा नहीं 'गर विरोध भी हुआ, 'तेज़ाब' खुल्ला मिलता है यहाँ , चाहे जब फेंकिए...
लोग कुछ ऐसे ही भरमाते हैं, हर रोज नई शक्लें बनाते हैं ....... खुश रहें आपसे ,अगर चटाओ तो माल बीता तो मुंह सुजाते हैं मुफ्त बस इनको गर खिलाओ तो बेहतर है यह तो बस माल मुफ्त का ही उड़ाते हैं खुद तो कितने ही डूबे हो गंदे कीचड़ में उंगली बस औरों पर उठाते हैं यह नहीं जानते औरों की भलाई करना इनकी आदत है बस रुलाते हैं मैं नहीं पलता, किसी के टुकड़ों पर हम तो अपना किया कमाते हैं