भगवान सिर्फ देते ही नहीं माँगते भी हैं। कभी भी किसी भी रूप में आकर आपसे आपकी प्रिय वस्तु माँगेंगे। वो एक परीक्षा की घड़ी होती है। उसमें सफलता या असफलता भी भगवान का ही निर्णय होता है।
मेरी हैसियत क्या हैं,किससे मैं क्या माँगता, ख़ुदा भी खुदगर्ज़ निकला उससे मैं अब क्या माँगता, ख़ुद को लेकर भटकना अब रास आता हैं, मैं मन्ज़िल से अपना ठिकाना क्या माँगता!!