इश्क़ भी उसका था,
रास्ते भी उसके था..
भरी महफ़िल भी उसकी थी,
लोगों का काफ़िला भी उसका था..
साथ सफ़र में चलने का इरादा भी उसका था,
बीच सफ़र में राह बदलने का फ़ैसला भी उसका था..
आज क्यों तन्हा हूँ मैं ख़ुद से ये सवाल करता हूँ,
लोग तो उसके ही थे,क्या ख़ुदा भी उसका था..!
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