हर सपना वो पूरा करते, जलाकर अपने अरमानों की चिता,
करने पूरी बच्चों की ख़्वाईश, हर सुबह निकल पड़ता है पिता।
माना नौ महीने गर्भ में रखकर, पीड़ा सहती है माता,
पर नौ महीने "अपने दिमाग़ में" बच्चों का भविष्य ढोता है पिता।
बचपन में लड़खड़ाते कदमों को, हाथ पकड़ के चलना सिखाते,
जब जब छोटे कदम चलते तो ख़ुशी से फ़ूले नहीं समाते।
डाँटने के पश्चात भी, आता है उनको प्यार जताना,
पर विश्व का सबसे कठिन काम है, अपने पिता को गले लगाना।
देखा है एक विशाल हृदय, एक टुकड़ा जुदा करते हुए,
निकलते हैं उनके भी आँसू, बेटी को विदा करते हुए।
घरवालों की फ़रमाइश पर, सब कुछ करना स्वीकार है,
ये भी बिल्कुल सत्य है, माँ अगर संसार है तो पिता पालनहार है।
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