हज़ारों नसीहतें दी लोगों ने मुझे, सब की सब रहीं मग़र बेअसर. उस राह पर बरबादियाँ ही थीं, मैं चल दिया था जिस राह पर.. पहुंच कर मंज़िल पर भी बेचैनी रही, हैरानी हुई मुझे ये जान कर... के एक मंज़िल से दूसरी तक, बस इतना सा है ज़िन्दगी का सफ़र....
तेरा यूँ अचानक ही सामने आ जाना मेरी रुकी रुकी सांसों का सबब हो गया.. हाँ पहले नहीं था आलम जाने ये अब हो गया कि मेरा हर दर्द तुझ संग यूँही बेअसर हो गया..