QUOTES ON #बूंदे

#बूंदे quotes

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30 MAY 2019 AT 20:39

आज भी मुझे उस बारिश का इंतज़ार है
जो सुहावनी हवाओ के साथ महकती
मिट्टी की खुशबू कुछ बीते लम्हो की
ताज़गी को रखता है बरकरार।।।
बचपन हो या जवानी
हर शख्स की ज़िंदगी से जुड़ी है
बारिश की एक प्यारी सी कहानी
हमारे प्यार का एहसास भी कुछ
बारिश जैसा ही है जो कभी होती
थी हम दोनों में मीठी सी तकरार
आज भी है मुझे उस बारिश का इंतज़ार।।

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14 AUG 2020 AT 18:39

छोड़ कर आसमां जो जमीं पर आ रही हो
यह कौन- सी मोहब्बत है ,जो इतनी शिद्दत
से निभा रही हो....

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30 JUL 2021 AT 22:52

बिखरने के बाद भी खुद को संभाला है
कुछ यूं मैंने जिंदगी को हैरत में डाला है

मत घबरा ये ज़ख्म नहीं, इनाम हैं तेरे
चलने वाले के पांव में ही आया छाला है

कहीं तो हंस के मिलती मुझे तू जिंदगी
तेरा हर पन्ना मैंने शिद्दत से खंगाला है

चित भी तेरी और पट्ट भी तेरी ही रही
तूने जब कभी सिक्का कोई उछाला है

रहने दे ये चांद किसी और के लिए
मेरे घर में तो जुगनू से भी उजाला है

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5 JUN 2021 AT 0:15

अनजान डगर
मयूर सा नाच उठा है मन
इक मनचाहा साथी पाकर
उड़ रही हूं जैसे आसमान पर
या हूं धरती पर ,कोई बताए आकर....

इंद्रधनुषी सपनों का संसार लिए
दिल बेकल है इक नई आस लिए
साथ चलना,उड़ना है
मिल कर तय करना है मीलों के सफर....

लेकिन क्या इतना सरल है
उखड़कर दूसरी जगह बस जाना??
अन्तर्द्वन्द में उलझी दिल में कई सवाल लिए
चल पड़ी हूं, उस पर जो है अनजान डगर

क्या मेरी दशा भी है ,उस नन्हे पौधे सी??
जिसे कहीं और रोपा जाएगा
किसी और को सौंपा जाएगा
मुरझा जाएगा या होगा चेतन
कैसा ये असमंजस कैसा ये आकर्षण?

मिलेगी जब पर्याप्त धूप तो खिलेगा रंग रूप
कम भी मिलेंगे यदि खाद पानी
फिर भी रचेगा ये
अद्भुत कहानी...

मिट रही हैं उलझनें
छंट रही हैं बदलियां
तैयार हूं चलने को, उस पर
जो है अनजान डगर...

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15 JUL 2021 AT 11:19

मरुस्थल में
तपते रेत पर,
इस छोर से उस छोर
कुछ पाने की चाह में,
बेतहाशा दौड़ रहे हैं
सब दौड़ रहे हैं
लेकिन मृगतृष्णा.....
ऊंची डाल पर बैठे पंछी
का सुन कलरव,
प्रहलादित हो कई बार
कभी लड़खड़ाते कदमों से
तृप्त करने
अंतर्मन की प्यास
सब भाग रहे हैं
लेकिन मृगतष्णा....
डूब रहा सूरज
फैल रहा अंधकार
क्या खोया क्या पाया
उलझ गया सवाल
व्यर्थ की इस भागमभाग में
लेकिन सबके खाली हाथ
है ये केवल
मृगतष्णा, मृगतष्णा ।।

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24 AUG 2021 AT 22:08

कभी कभी यूं खुद को बहलाया जाए
खुद ही खुद को खुद से चुराया जाए

कौन क्या कैसे सबकुछ भुल भालकर
बस अपने लिए खुद को सजाया जाए

जिम्मेवारियां सारी पीछे छोड़ छाड़कर
चलो सिर्फ तितलियों को उड़ाया जाए

मतलबी रिश्तों की भीड़ से भाग कर
रिश्ता खुद से कुछ देर निभाया जाए

अच्छी सी चाय अपने लिए बनाकर
गीत पसंद का खुद को सुनाया जाए

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18 AUG 2021 AT 22:24

मन रे तू क्या खोजता है
हर पल ये क्या सोचता है

सब तो है पास
बुझे ना तेरी प्यास
भागे है अनवरत
भटके किसकी आस
मन रे तू क्या खोजता है
हर पल ये क्या सोचता है

रहता है डरा डरा
क्यों है भरा भरा
कोलाहल है हरदम
शांत हो अब ज़रा..
मन रे तू क्या खोजता है
हर पल ये क्या सोचता है

तू है सब जाने
भला बुरा पहचाने
फिर है ढूंढे
क्यों रोज़ नए बहाने
मन रे तू क्या खोजता है
हर पल ये क्या सोचता है



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23 OCT 2021 AT 23:07

अपने अहम में चूर
खूब शोर मचाते
बेफिक्री के छल्ले
उड़ाते तुम,,,,,
जब उड़ते हो
ऊंचे आसमान में
बादल की तरह
बेकरार होकर,,,
ये भूलकर कि
तुम और मैं मेरी बूंद बूंद से
कण कण से
मिलकर बने हो तुम,,,,

मैं नदी फिर भी
तुम्हें पनाह देती हूं
जब टूट जाते हो
बिखर जाते हो तुम,,,,

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27 AUG 2021 AT 15:29

चंचल यौवना
चाहती थिरकना
मन की करना
खुल कर बरसना.....
बरसात सी ....तुम

और मैं,,,, मैं मेघ सा
चाहता तुमको
जकड़ना, कैद करना
बस अपनी पकड़ में रखना.....

लेकिन...
आखिर कब तक......

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20 AUG 2021 AT 20:29

शब्द गुम हो जाता है***
है उम्र का ज़ोर
या शायद कुछ और
कभी कभी
मुंह तक आते आते
शब्द गुम हो जाता है...
बेबस मन तड़पता है
दौड़ता है, भटकता है
पर वो ...
अपनी एक झलक दिखला,
हल्का सा एहसास छोड़
जाने कहां छुप जाता है...

यूं खेल
लुकाछिपी कुछ देर
फिर देर सबेर
अचानक वो
आ धमकता है.....
लेकिन महत्वहीन,
ज्यों कृपाण रण और
दीपक रैन बिन
मूल्यहीन..

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