बह रही हूँ मैं, धीरे धीरे तुम्हारे प्रेम में,
रोज डुबकी लगाती हूँ,
पर कभी बाहर नहीं आती,
बल्कि गहराई में, अंदर ही अंदर डूबती ही जा रही हूँ,
तुम्हारे प्रेम की गहराई को...
माप लेना चाहती हूँ,
इसकी तह तक जाना चाहती हूँ,
सच कहूँ तो...बावरी हो गयी हूँ,
लेकिन मैंने सच कहा....,,,
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मैं, तुम्हारे प्रेम रूपी सागर में तो, रोज डुबकी लगाती हूँ,
पर तुमसे "कोसो दूर" हूँ..!!
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