QUOTES ON #बसंत

#बसंत quotes

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29 JAN 2020 AT 11:03

नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनी वर दे !

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10 FEB 2019 AT 11:20

नव गति, नव लय, ताल छंद नव
नवल कंठ, नव जलद मन्द्र रव;
नव नभ के नव विहग वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !

वर दे, वीणावादिनी वर दे

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बसंत का आना एक कयामत, प्यार का पुष्प पल्लवित होता है,
हवा बसंती, चंचल चितवन, तब प्रेम में पुरुष बसंत हो जाता है।

भ्रमर बन प्रेयसी पर मंडराए, जेसे वो नवपल्लवित सी कौंपल हो,
देख प्रेयसी का प्रेम पराग, पुरुष पर महुआ का असर हो जाता है।

फाल्गुनी बयार से मदमस्त हो कर भीगी धानी चुनर प्रेयसी की,
सौगात प्रेम का बन कर गुलदस्ता, पुरुष का मन मयूर हो जाता है

ऋतु मधुमास की प्रीत रीत से प्रेयसी पीली सरसों सी बिखरी सी,
सुर्ख गुलाब सी लज्जा कपोलों से पुरुष वसंतवल्लभ हो जाता है।

कुहके कोयल, बहकी तितली, तन–मन हरितामा प्रेयसी की भी,
कच्ची कचनार सी उन्मत प्रिया से पुरुष प्रियवर में बदलता है।।

मन वीणा के तार झृकंत होने लगे प्रेयसी वरदायिनी पुरवाई सी,
बसंत मुहूर्त के प्रेमाक्षर से कर श्रीगणेश, प्रेम विद्यार्थी हो जाता है।

हरित पीत वसनों से लिपटी जेसी प्रेयसी दुल्हन सी श्रृंगारित हुई,
प्रेयसी के मद नयनों के पुष्पबाण से पुरुष ऋतुराज बन जाता है।

अमराई के बौर बौराए जैसे, वैसे तेरे भाल पर प्रेम का हस्ताक्षर हो,
प्रेम मदनोत्सव की दस्तक आहट में ये "राज" बसंत हो जाता है।
– राज सोनी

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1 FEB 2017 AT 13:45

मन वसन्त
तन वसन्त
जीवन वसन्त
हो गया

कोई निराला
कोई पंत
कोई दुष्यंत
हो गया

प्रकृति और
संस्कृति से
प्रेम अनंत
हो गया

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18 FEB 2021 AT 8:52

माॅं- बाप पेड़ की जड़ सामान है हमारी जिन्दगी की।
जितनी खुशियां उनकी जिन्दगी में रहती है उतना हम
मुस्कुराते है। माॅं- बाप ने सींच - सींच कर अपने खून से
तुम्हें मजबूत तना बनाया है,
जिन्दगी की बागडोर तुम्हारे हाथ में है,
जितना पानी पड़ेगा जड़ में उतना तुम मजबूत रहोगे।
डाली बनकर तुम्हारे जीवन में एक हमसफ़र आता है।
उसको मजबूती तुम दोगे तुमको मजबूती तुम्हारे माॅं- बाप।
हमसफ़र से मिलकर अगर तुम उनका दामन छोड़ोगे
तो तुम्हारी मजबूती ही चली जाएगी।

छोड़ दिया अगर तुमने दामन,
बन जाओगे इस जहां से वैरागन।
इश्क़ बसंत है एक दिन तो झड़ जाएगा।
तुमको अपनों का एहसास उनके खोने बाद हो पायेगा।

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22 JAN 2018 AT 17:45

बसंत ऋतु तो एक, अप्रितम सा बहाना है,
हमें अपनें प्रिय का, सुखद सान्निध्य पाना है,
छुअन से उसके होती है, मन की वीणा झंकृत,
निरुत्तर होकर, अंतिम सोपान तक ले जाना है।

प्रकृति सुंदरी का, करने अनुपम श्रंगार,
नवकपोल भी ले आए है, मदमस्त बहार,
हर प्रेमी युगल के हृदय में, भर दे बस प्यार,
कुछ ऐसी ही है, ऋतुराज बसंत की फुहार।

अमवा भी बौराई, सुनकर कोयल की बोली,
सरसों के खेतों की भी, हौले से चितवन डोली,
मधुर मिलन की आस में, झिड़ आया राग-मल्हार,
भरने अपनी बाहो में, फागुन खड़ा द्वार के पार।

कामदेव ने पलाश के, पुष्पों की जो प्रतयंचा चढ़ाई,
अंर्तमन में प्रितम से, आलिंगन की प्यास बढ़ाई,
छूटा तीर तो भेद गया, इस हृदय को आर-पार,
तरूणी के मुखमंडल पर, सुप्त कामना मुस्काईं।

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5 FEB 2020 AT 19:34

तुम्हारे बाद
जब बीत गया बसंत
सूख गए गुलाब
ठंडी हो गई चाय
अधूरी रह गई चिट्टियाँ
गायब हो गई तितलियाँ
तब एहसास हुआ
कुछ चीजों की
न पुनरावृत्ति होती है
और न ही भरपाई

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8 JAN 2020 AT 12:26

" बसंत "बोलता हैं,
लेकिन
केवल उनसे
जो सुनना जानते हैं।"

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1 JUL 2018 AT 14:40

बसंत को डर है
पत्तियाँ गिरने का
खूबसूरती खोने का
कमज़ोर होने का भाव
मारता है पल पल
पतझड़ निडर है
निडर होना मुश्किल है
मेरे अंदर सिर्फ़ पतझड़ है
टूटने का खौफ़ नहीं
मुझे अब मोहब्बत है
पतझड़ से..

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13 DEC 2017 AT 15:29

बसन्त की बहार में, सावन सी भर उठती हूँ
तुझे सोचकर जज्बातो में, तेरे एहसासों से संवर उठती हूँ..!!

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