मैं गंगा-सी पाक तो नहीं,लेकिन लहरों के साथ बहना चाहती हूँ,
अस्सी के घाट पर सुकून भरे लम्हों में ठहर जाना चाहती हूँ
हाँ,मैं बनारस के इश्क में डूँब जाना चाहती हूँ............!!
मैं पार्वती तो नहीं,लेकिन मेरे शिव से मिलना चाहती हूँ,
कुछ अधूरी है,फिर भी मनन्त के धागें में उसे बाँधना चाहती हूँ।
हाँ,मैं बनारस के इश्क में डूब जाना चाहती हूँ..........!!
मैं आवारा नहीं,लेकिन उन तंग गलियों की आवारगी देखना चाहती हूँ।
सुबह-ए-बनारस में आफताब की चाँदनी चाहती हूँ।
हाँ,मैं बनारस के इश्क में डूँब जाना चाहती हूँ..........!!
मैं बनारसी तो नहीं,लेकिन बनारस के रंग में रंगना चाहती हूँ,
बनारसी पान और नुक्कड़ की वो चाय पीना चाहती हूँ।
हाँ,मैं बनारस के इश्क में डूँब जाना चाहती हूँ........!!
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