रोज़ अब कौन बहाना ढूँढे
झूठ ख़ुद सारा ज़माना ढूँढे
सच ही होती है मोहब्बत यारों
इश्क़ जब यार पुराना ढूँढे
ज़िन्दगी को ही हक़ीक़त समझो
मौत हर रोज़ फ़साना ढूँढे
कितना भी दर्द छुपा कर रक्खो
तीर दुश्मन का निशाना ढूँढे
ख़्वाब आँखों में सजाकर 'आरिफ़'
क्यों तू दुनिया में घराना ढूँढे
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