QUOTES ON #पारस

#पारस quotes

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9 JUN 2018 AT 23:29

तुम गंगा घाट की संध्या आरती मैं सुकून वही बनारस सा,
बगैर तुम्हारे कुछ भी नहीं मैं तेरी छुअन से बन जाऊँ पारस सा..

तुमसे मिलकर मैं खिल खिल जाऊँ और बगैर मिले हूँ नीरस सा,
तुम परिपूर्ण हो खुद अपने आप में और मैं किसी अधूरी ख्वाहिश सा..

तुम नायाबी की मिसाल ठहरी और मैं उसमें नुमाइश सा,
तुम घासलेट की बूँद हो छोटी और मैं तुम्हें सुलगाता माचिस सा..

तुम आसमाँ के विस्तार सी और मैं नदारद चाँद अमावस सा,
तुम हो सूखी रेत के मानिंद मैं मिल जाऊँ उसमें बारिश सा..

तुम गंगा घाट की संध्या आरती मैं सुकून वही बनारस सा,
बगैर तुम्हारे कुछ भी नहीं मैं तेरी छुअन से बन जाऊँ पारस सा..

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22 JUN 2020 AT 21:11

अब इसमें मेरे दिल का क्या गुनाह की तुझसे प्यार कर बैठा था...
मै भी नासमझ था जो तुझसे मोहब्बत का इजहार कर बैठा था...
तूने मेरे दिल ये बताया नहीं...
और मैंने भी खुशी में कभी समझाया नहीं...
की प्यार कर मगर इजहार मत कर....
नहीं तो तेरा प्यार जिंदा तो होगा मगर सिर्फ और सिर्फ इन कविताओं के पर.....
की जरा सा देर हो गई मेरे दिल को यह समझने में...
और शायद यही वजह बन गई आज मेरे कवि बनने में..!

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14 MAY 2022 AT 15:04

कोई ला दे उस पारस को
जो दग्ध हृदय को हरा बना दे

फर्श पर बिखरे ख्वाबों को
अलमारी में उठा सजा दे

मन के अनजाने से भय को
थपकी देकर कहीं सुला दे

सोया है सामर्थ्य कहीं जो
झंझा लाकर उसे जगा दे

पांव जमे जो कहीं सफ़र में
धक्का देकर हमें बढ़ा दे

आँखों के बुझे चमन में
आशाओं का दिया जला दे

कोई ला दे उस पारस को
जो दग्ध हृदय को हरा बना दे

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6 JUL 2020 AT 17:38

गंगा सी पाक प्रीत से.....
मै पारस हो गई
डुबकी जो ली...रूह ने
ये ज़िन्दगी बनारस हो गई

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24 MAY 2019 AT 19:48

सफर रोशनी का,
रात की चौखट से शुरू हुआ
अहसास खुद से मिलने का,
खुद को खोकर हुआ

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24 MAY 2019 AT 19:29

रात की आहट ,
इस दिल की खामोशी में कुछ हलचल मचा रही है
सुना है ,
आज मुझसे मिलने मेरी तन्हाई आ रही है।

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19 MAR 2018 AT 20:15

इल्म नहीं आज तलक भी तेरी आहट पाकर कितना सँवर जाती हूँ,
तू पारस पत्थर सा है तिरे छूने से मैं लोहा भी'कनक' हो जाती हूँ..

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7 JAN 2019 AT 22:19

साहब ने पारस क्या छुआ
१० फीसदी सुवर्ण हो गए
लोहपुरुष को सप्त धातु दे
एकीकरण समर्पण हो गए

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24 MAY 2019 AT 19:24

रात एक अनसुलझी सी पहेली है,
अंधेरे में जाने मेरे कितने रूप दिखाती है।
मेरी तन्हाई में,
जाने कितने 'मैं' से मुलाकात करवाती है।।

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24 MAY 2019 AT 19:17

कभी कभी अंधेरी रात में
चल देता हूँ टहलने
तन्हाई में कुछ खुद से बातें करने
इस भगती-दौड़ती ज़िन्दगी से..एक विराम लेने

अपने अकेलेपन में जाने कितनों से मैं बातें करता हूँ
कुछ फूलो की खुशबू को,
इस दिल मे संजोए चलता हूँ
अंधेरे में अपना वजूद थामे हर पेड़ से
जाने क्यों अपनी राह पूछने लगता हूँ?
उड़ते पंछियो की बातों में खुदको सुनने मैं लगता हूँ
हर आजाद परिंदे को इस दिल के सलिको में कैद मैं करने लगता हूँ
कुछ इस कदर तन्हा राह पर,
इन अनजाने अपनो के संग मैं बढ़ने लगता हूँ।

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